वही है बुद्ध
जीत लिया जिसने
जीवन युद्ध !
शिखरों तक
किसको पहुँचाया
बैसाखियों ने !
इच्छाएँ तट
ज़िन्दगी एक नदी
आशा की नाव !
यह संसार
उसका ही जिसने
बाँटा है प्यार !
वही है सार
कर्म भूमि केवल
यह संसार !
संसार ऐसा
जैसा तुम बोओगे
उगेगा वैसा !
प्रेम लुटाओ
गोल है यह पृथ्वी
वापस पाओ !
ठूँठ हो रही
खुशहाल ज़िन्दगी
पेड़ खोकर !
पूछती रही
मानवता का पता
व्याकुल नदी !
किसने सुनी
उनकी फरियाद
बेचारे पेड़ !
धूप सहते
सुखद छाया देते
संत हैं वृक्ष !
हरे पेड़ों से
करने लगे लोग
काली कमाई !
कटे जब से
हरे-भरे जंगल
उगी बाधाएँ !
बढ़ता ताप
घटती हरियाली
प्रगति-भ्रम !
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला