Saturday, May 28, 2011

हाइकु कविताएँ

वही है बुद्ध
जीत लिया जिसने
जीवन युद्ध !




शिखरों तक
किसको पहुँचाया
बैसाखियों ने !



इच्छाएँ तट
ज़िन्दगी एक नदी
आशा की नाव !



यह संसार
उसका ही जिसने
बाँटा है प्यार !



वही है सार
कर्म भूमि केवल
यह संसार !



संसार ऐसा
जैसा तुम बोओगे
उगेगा वैसा !




प्रेम लुटाओ
गोल है यह पृथ्वी
वापस पाओ !




ठूँठ हो रही
खुशहाल ज़िन्दगी
पेड़ खोकर !



पूछती रही
मानवता का पता
व्याकुल नदी !



किसने सुनी
उनकी फरियाद
बेचारे पेड़ !



धूप सहते
सुखद छाया देते
संत हैं वृक्ष !



हरे पेड़ों से
करने लगे लोग
काली कमाई !



कटे जब से
हरे-भरे जंगल
उगी बाधाएँ !



बढ़ता ताप
घटती हरियाली
प्रगति-भ्रम !



- त्रिलोक सिंह ठकुरेला